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खाद्य तेल

खाद्य तेल विक्रेताओं के लिए बड़ी राहत, स्टॉक सीमा में मिली भारी छूट

खाद्य तेल विक्रेताओं के लिए बड़ी राहत, स्टॉक सीमा में मिली भारी छूट

खाद्य तेल बेचने वाले थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के लिए राहत भरी खबर सामने आ रही है। सरकार ने खाद्य तेल पर स्टॉक सीमा में छूट जारी की है, जिससे खुदरा और थोक विक्रेताओं के चेहरे पर खुशी नजर आ रही है, इससे आम जन को भी बेहतर फायदा होने जा रहा है। स्टॉक सीमा में छूट से खाद्य तेल की कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। साथ ही, इससे सबसे बड़ा फायदा हो रहा है कि कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और जमाखोरी पर लगाम लगती हुई नजर आ रही है। सरकार ने हाल ही में खाद्य तेलों और तिलहन के थोक और खुदरा विक्रेताओं के लिए कीमतों में स्टॉक सीमा में भारी छूट दी है। मंत्रालय ने सख्त आदेश देते हुए एक बयान में कहा है कि “आदेश तुरंत प्रभाव से लागू होगा”।


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बढ़ती कीमतों और स्टॉक नियंत्रण आदेशों के कारण कई थोक व्यापारी और खुदरा विक्रेता अधिक मात्रा में विभिन्न खाद्य तेलों की किस्मों / ब्रांडों को रखने में असमर्थ थे। लेकिन अब खुदरा विक्रेता और थोक व्यापारी आसानी से ऐसा कर सकेंगे। स्टॉक लिमिट ऑर्डर से छूट से तिलहन की कीमतों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। तिलहन उगाने वाले सभी किसानों के लिए रिटर्न अधिक मिलता है। सरकार ने 8 अक्टूबर, 2021 को सबसे पहले खाद्य तेलों की कीमतों की जांच के लिए स्टॉक सीमा लगाई थी, जिसके तहत स्टॉक सीमा की मात्रा राज्यों द्वारा तय की जानी थी। अब थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं को इससे छूट देने का फैसला लिया गया है। इस साल केंद्र ने 30 जून तक आदेश का विस्तार करते हुए एक समान स्टॉक सीमा निर्धारित की थी। लेकिन अब इस आदेश को 31 दिसंबर, 2022 तक बढ़ा दिया गया है। घरेलू बाजारों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी खाद्य तेल की कीमतों में काफी गिरावट देखी जा रही है। बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं और थोक विक्रेताओं को स्टॉक नियंत्रण आदेश से छूट देने की आवश्यकता महसूस की गई। क्योंकि रिपोर्टें आ रही थीं कि थोक विक्रेताओं और बड़ी श्रृंखला की खुदरा दुकानों को नियंत्रण आदेश के कारण उनकी बिक्री में समस्या का सामना करना पड़ रहा है।


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मंत्रालय के अनुसार, लगाई गई स्टॉक सीमा वर्ष 2008 में स्टॉक सीमा में निर्दिष्ट सीमाओं पर आधारित थी। लेकिन आज, 2008 की तुलना में बाजार में बड़े पैमाने के खुदरा विक्रेता हैं। स्टॉक सीमा आदेश तब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कीमतों में वृद्धि के कारण लगाया गया था। उच्च कीमतों और स्टॉकिंग के कारण कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और जमाखोरी खूब हुई थी। अब सरकार ने समय पर रुकावट डालने का फैसला किया है, और इससे कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिली है। इतना ही नहीं, इस हस्तक्षेप से कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और जमाखोरी पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। मंत्रालय ने कहा कि सरकार द्वारा इस समय पर हस्तक्षेप से आसमान छूती कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट आई और जमाखोरी पर नियंत्रण रखने में मदद मिली। इतना ही नहीं बढ़ती महंगाई के इस दौर में आमजन को बहुत ही फायदा हो रहा है, तेल की कीमतों में गिरावट होने से लोग खुश नजर आ रहे है। लोगों ने इस खुशी की खबर के बाद राहत भरी सांस ली है।
पामतेल की मांग में हुई अद्भुत बढ़ोत्तरी, नवंबर में 34 फीसद तक खाद्य आयात बढ़ा

पामतेल की मांग में हुई अद्भुत बढ़ोत्तरी, नवंबर में 34 फीसद तक खाद्य आयात बढ़ा

अक्टूबर माह के समाप्त विपणन वर्ष 2021-22 में भारत में खाद्य तेलों का आयात इससे पूर्व वर्ष के 131.3 लाख टन से ज्यादा 140.3 लाख टन हो गया। मूल्य के लिहाज से, खाद्य तेलों का आयात साल 2021-22 में 34 फीसद वृद्धि लगभग 1.57 लाख करोड़ रुपये की रही है। बतादें, कि कच्चे पामतेल (सीपीओ) एवं शुद्ध पाम तेल के आयात में तीव्र वृद्धि की वजह से भारत का खाद्य तेल आयात नवंबर में ३४ फीसद बढ़कर 15.29 लाख टन तक हो गया है। उद्योग संगठन एसईए द्वारा सूचित किया गया है, कि सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) द्वारा बुधवार को तेल विपणन साल 2022-23 के प्रथम माह नवंबर हेतु खाद्य तेल एवं गैर-खाद्य तेल समेत कुल वनस्पति तेलों के आयात के आंकड़े लागू किए गये हैं। आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2022 में वनस्पति तेलों का आयात 32 प्रतिशत बढ़कर 15,45,540 टन हो गया, जो पिछले साल इसी महीने में 11,73,747 टन था।

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एसईए ने बताया है, कि कुल वनस्पति तेल के आयात में से खाद्य तेलों की भागीदारी इस वर्ष नवंबर में वृद्धि कर 15,28,760 टन हो गया, जो कि 2021 के इसी माह में 11,38,823 टन था। अखाद्य तेलों का आयात नवंबर में 52 फीसद घटकर 16,780 टन रह गया, जो एक वर्ष पूर्व के समय में 34,924 टन था। एसईए द्वारा बताया गया है, कि इसके अतिरिक्त खाद्य तेलों के अंतर्गत कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का आयात एक माह में सर्वाधिक रहा है। भारत ने माह नवंबर, 2022 में रिकॉर्ड 9,31,180 टन सीपीओ का आयात किया गया है,हालाँकि यह एक वर्ष पूर्व के समान अवधि में यह 4,77,160 टन रहा था। सीपीओ आयात का अधिकतम स्तर अक्टूबर, 2015 में 8,78,137 टन का था। आरबीडी (रिफाइंड) पामोलिन का आयात नवंबर माह में वृद्धि होकर 2,02,248 टन हो गया, जो कि पूर्व के वर्ष में इसी माह में 58,267 टन था। सूरजमुखी तेल का आयात भी 1,25,024 टन से बढ़कर 1,57,709 टन हो गया था। दरअसल, कच्चे सोयाबीन तेल का आयात नवंबर माह, 2021 के 4,74,160 टन से कम होकर माह में 2,29,373 टन पर आ गया। एसईए ने आरबीडी पामोलिन के अत्यधिक आयात पर चिंता जाहिर की है, क्योंकि यह घरेलू रिफाइनरी उघोगों को प्रभावित कर रहा है। एसोसिएशन ने बताया, सीपीओ (5 %) एवं रिफाइंड तेल (12.5 %) के मध्य 7.5 प्रतिशत का स्थायित्व आयात शुल्क अंतर सीपीओ के विपरीत हमारे देश में रिफाइंड पामोलिन के आयात को बढ़ावा देता है। साथ ही, उनका कहना है, कि यह बोलने की जरुरत नहीं है, कि निर्धारित माल का यह आयात राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल है एवं घरेलू पाम रिफाइनिंग उद्योग की सामर्ध्य एवं क्षमता उपयोग को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है।

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अक्टूबर में समापन विपणन वर्ष 2021-22 में भारत के खाद्य तेलों का आयात इससे पूर्व वर्ष में 131.3 लाख टन से वृध्दि होने से 140.3 लाख टन हो गया है। कीमत के हिसाब से, खाद्य तेलों का आयात साल 2021-22 में 34 फीसद से बढ़ करीब 1.57 लाख करोड़ रुपये का रहा है। जो कि वर्ष 2020-21 में 1.17 लाख करोड़ रुपये का हुआ था। भारत अपनी घरेलू मांग का करीब 60 फीसद आयात करता है। भारत द्वारा मलेशिया थाइलैंड एवं इंडोनेशिया से पाम तेल का आयात किया जाता है। सोयाबीन का तेल ब्राजील एवं अर्जेंटीना से आता है, हालाँकि सूरजमुखी का तेल यूक्रेन एवं रूस से आता है।
खुशखबरी : तेलों की कीमतों में होने वाली है 10 रुपये तक की गिरावट

खुशखबरी : तेलों की कीमतों में होने वाली है 10 रुपये तक की गिरावट

तेल की कीमतों में इजाफा होते ही रसोई का बजट खराब हो जाता है। इसी डगमगाई हालत को संभालने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से कवायद की जा रही है। खाने के तेलों की कीमतों में 10 रुपये प्रति लीटर तक कमी आ सकती है। खाद्य उत्पादों पर थोड़ी सी महंगाई आते ही केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार निराश हो जाती हैं। वर्तमान में गेंहूं की बढ़ती कीमतों ने केंद्र सरकार की चिंता को बढ़ा दिया था। इसका प्रभाव आटे के भावों पर देखने को मिला है। हालांकि, गेहूं की आपूर्ति को बढ़ाकर गेहूं और आटे की कीमतों को कम करने की पहल केंद्र सरकार के स्तर से की गई है। हाल ही, में तेल की कीमतों को लेकर राहत भरी एक खबर सामने आ रही है। तेल सस्ता होने से आम लोगों की रसोई के बजट में भी काफी सुधार हो पाएगा।

तेल की कीमतों में 6 प्रतिशत तक गिरावट हो सकती है

केंद्र एवं राज्य सरकार तेल की कीमतों पर काबू करने के लिए निरंतरता से कदम उठा रही हैं। आगामी दिनों में तेल की कीमतों में सहूलियत देखने को मिल सकती है। कहा गया है, कि तेल की कीमतों में 6 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की जा सकती है। कीमत कम करने का फैसला केंद्र सरकार की सलाह के उपरांत एडिबल ऑयल कंपनियों के स्तर से लिया गया है। ये भी पढ़े: ज्यादातर तेलों के भाव में आई गिरावट से लोगों में खुशी की लहर

क्रूड पाम ऑयल की कीमतों में इतने रुपए की गिरावट होगी

मीडिया खबरों के मुताबिक, फॉर्च्यून ब्रांड के मालिक अडानी विल्मर और जेमिनी एडिबल और फैट्स इंडिया, ये जेमिनी ब्रांड का मालिक है। इनके स्तर से भावों में क्रमशः 5 रुपये प्रति लीटर और 10 रुपये प्रति लीटर की कमी करने का फैसला लिया गया है। हालांकि, कंपनी की तरफ से यह कहा गया है, कि तेल की कीमतों में जो गिरावट हुई है, उसका फायदा आगामी 3 सप्ताह में देखने को मिल सकता है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) की तरफ से भी एक स्टेटमेंट आया है, कि इसने भी अपने खाद्य तेलों पर एमआरपी में गिरावट करने एवं उपभोक्ताओं को फायदा पहुँचाने के लिए जानकारी साझा करने की सलाह दी गई है।

कच्चे तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में आई गिरावट

एसईए की तरफ से सामने आए बयान में कहा गया है, कि विगत 6 माह में तेल के भावों में सहूलियत देखने को मिली है। इसमें विगत 60 दिनों में अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में क्रूड पाम ऑयल के भावों में कमी देखने को मिली है। बतादें, कि सरसों, मूंगफली और सोयाबीन का देश में अच्छा-खासा उत्पादन हुआ है। लेकिन, इसके बावजूद भी तेलों की कीमतों में उतनी गिरावट नहीं हो पाई है। इस वजह से अब एडिबल कंपनियों को इस प्रकार तेल की कीमत कम करने की सलाह दी गई है।
आने वाले समय में तिलहन, दलहन व खाद्य तेलों की कीमतों में इजाफा हो सकता है

आने वाले समय में तिलहन, दलहन व खाद्य तेलों की कीमतों में इजाफा हो सकता है

विशेषज्ञों का कहना है, कि खरीफ फसलों के लिए अगस्त एवं सितंबर माह की बारिश काफी महत्व रखती है। अगर इन दो महीनों में अच्छी-खासी वर्षा होती है, तो दलहन एवं तिलहन का उत्पादन बढ़ जाता है। परंतु, इस वर्ष अगस्त में औसत से कम वर्षा हुई है, जिसका प्रभाव धान, दलहन, तिलहन और गन्ने की पैदावार पर भी देखने को मिल सकता है। वर्तमान में महंगाई से सहूलियत मिलने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है। आगामी दिनों में तिलहन एवं दलहन के भाव में और इजाफा हो सकता है। इससे आम जनता के ऊपर महंगाई का भार और अधिक बढ़ जाएगा। ऐसा बताया जा रहा है, कि अगस्त में औसत से भी कम बारिश हुई है और सितंबर तक ऐसी ही स्थिति बनी रहेगी. यानि कि अगले महीने भी मानसून कमजोर ही रहेगा. ऐसे में दलहन और तिलहन की पैदावार पर असर पड़ेगा, जिससे उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है. ऐसे में आने वाले दिनों में दलहन और तिलहन की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है। किसान इस बार दलहनी फसलों का उत्पादन करके अच्छा मुनाफा कमाने के साथ साथ बेहतर ढंग से खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकते हैं। बतादें कि बारिश का प्रभाव पड़ने से दलहन और तिलहन फसलों की कीमतों में वृद्धि देखी गई है।

इस बार अगस्त में विगत 8 वर्षों से कम बारिश दर्ज की गई है

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, इस वर्ष अगस्त माह में 8 वर्षों के अंतर्गत काफी कम बारिश दर्ज की गई है। दरअसल, अलनीनो फैक्टर के कारण आगामी महीनों में भी औसत से कम बारिश होने की संभावना है। बतादें, कि भारत भर में दलहन और तिलहन की बुआई हो चुकी है। अब कुछ दिनों के उपरांत फसलों में फूल आने शुरू हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में फसलों की सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है। परंतु, पानी के अभाव की वजह से दलहन और तिलहन के उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा, जिससे पैदावार में कमी भी देखने को मिल सकती है। यह भी पढ़ें: दलहन की फसलों की लेट वैरायटी की है जरूरत

भारत के केवल इन हिस्सों में अच्छी-खासी वर्षा दर्ज की गई है

मौसम विभाग ने बताया है, कि भारत के केवल उत्तर पश्चिम भाग में ही बेहतरीन वर्षा रिकॉर्ड की गई है। इन हिस्सों में विगत वर्ष की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक बरसात दर्ज की गई है। साथ ही, मध्य भारत में औसत से 7 प्रतिशत कम, पूर्व उत्तर भारत में 15 प्रतिशत कम और दक्षिण भारत में औसत से 17 प्रतिशत कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। ऐसी स्थिति में मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया है, कि अगस्त माह के दौरान संपूर्ण भारत में विगत वर्ष की तुलना में 35 प्रतिशत कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। अधिकारियों की मानें तो अगर सितंबर में सामान्य से अधिक भी बारिश होती है, तो भी अगस्त महीने की कमी की भरपाई नहीं की जा सकती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 332 मिलियन टन निर्धारित किया गया है। हालांकि, फसल सीजन 2022-23 में भारत में खाद्यान्न पैदावार में 5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी। भारत का खाद्यान्न भंडार 330.5 मिलियन टन पर पहुंच गया था। वहीं, इस वर्ष खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 332 मिलियन टन निर्धारित किया गया है।
चावल की भूसी से तेल बनाकर मालामाल हुआ यह किसान

चावल की भूसी से तेल बनाकर मालामाल हुआ यह किसान

इन दिनों भारत सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। इसके लिए सरकार ने कई तरह की नई योजनाएं लॉन्च की है। साथ ही सरकार कई योजनाओं के अंतर्गत भारी अनुदान भी प्रदान कर रही है ताकि देश के किसान अपने पैरों पर खड़े हो सकें। साथ ही किसानों की आय में तेजी से इजाफा हो सके। किसानों की आय को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा खेती किसानी से संबंधित उद्योग लगाने की भी सलाह दी जा रही है ताकि किसान भाई खेती किसानी के साथ-साथ उद्योग के क्षेत्र में भी अपने पैर पसार सकें। खेती किसानी से संबंधित उद्योग लगाने के लिए सरकार किसानों को आर्थिक मदद भी मुहैया करवा रही है। यह मदद सरकार के द्वारा एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के अंतर्गत की जाती है। हाल ही में महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के एक किसान ने एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की सहायता से राइस ब्रान ऑयल की मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट खोली है। इसके लिए सरकार ने बड़ी मात्रा में किसान को फंड उपलब्ध करवाया है। इस यूनिट की मदद से वो चावल की भूसी से तेल निकाल रहे हैं। इस तेल को बाजार में राइस ब्रान ऑयल के नाम से जाना जाता है। राइस ब्रान ऑयल का उद्योग लगाने से वो अच्छा खास मुनाफा कमा रहे हैं साथ ही उन्होंने जिले में कई लोगों को रोजगार भी दिया है।

 

राइस ब्रान ऑयल के फायदे

राइस ब्रान ऑयल को बेहद स्वास्थ्यवर्धक तेल माना जाता है। यह एक वनस्पति तेल है, इस तेल में विटामिन-ई, प्रोटीन और फैटी एसिड प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह तेल एशियाई देशों में बहुतायत के इस्तेमाल किया जाता है। राइस ब्रान ऑयल में फैट की मात्रा न के बराबर होती है, इसलिए इस तेल के उपयोग से शरीर में कोलेस्ट्राल का स्तर नहीं बढ़ता। यह तेल मूंगफली के तेल की तरह दिखाई देता है। इस तेल में ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर में हार्मोन को संतुलित रखते हैं। शरीर में हॉर्मोन संतुलित न होने के कारण मोटापा, पीरियड्स में अनियमिता, अनचाहे बालों की ग्रोथ, पाचन क्रिया में गड़बड़ी जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इन बीमारियों से यह तेल सुरक्षा प्रदान करता है। 

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इसके साथ ही राइस ब्रान ऑयल के उपयोग से ह्रदय रोग के खतरे को कम किया जा सकता है। इस तेल में ओरिजेनॉन नामक पदार्थ पाया जाता है जो ह्रदय संबंधी रोगों में लाभप्रद माना गया है। चूंकि इस तेल में कोलेस्ट्राल की मात्र बेहद कम होती है तो कई बार डॉक्टर ब्लड प्रेशर के मरीजों को भी इस तेल के उपयोग की सलाह देते हैं। इसके साथ ही यह तेल मानव शरीर में मजबूत इम्यून सिस्टम बनाता है ताकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सके। कई डॉक्टर बताते हैं कि राइस ब्रान ऑयल में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट कैंसर से बचाने में मददगार है। ऐसे में इस तेल के सेवन से ब्रेस्ट कैंसर, लग्स कैंसर और  ब्रेन कैंसर से भी बचा जा सकता है।

राइस ब्रान ऑयल के साइड इफेक्टस

राइस ब्रान ऑयल का उपयोग शुरू करने के बाद गैस और पेट की परेशानी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके साथ ही लोगों को खुजली और चमड़ी के लाल होने की परेशानी भी हो सकती है। कई लोगों में देखा गया है कि तेल के सेवन से उनकी चमड़ी में दाने पड़ने लगे हैं। अगर ऐसा है तो तुरंत ही राइस ब्रान ऑयल का सेवन बंद कर दें। साथ ही जिन लोगों को पाचन से संबंधित समस्या है उन्हें भी राइस ब्रान ऑयल का सेवन नहीं करना चाहिए।